प्रेगनेंसी में सोनोग्राफी कब और कितनी बार करवाना चाहिए?

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After how many days and level, get sonography done

प्रेगनेंसी में सोनोग्राफी कब और कितनी बार करवाना चाहिए?

After how many days and level, get sonography done

प्रेगनेंसी में सोनोग्राफी कब और कितनी बार करवाना चाहिए

  • प्रेगनेंसी का हर फेज बहुत ही ज्यादा देखभाल से जुड़ा होता है और इस दौरान सही जांच, डॉक्टर की सलाह और नियमित रूप से ली जाने वाली दवाओं का खास ख्याल रखना पड़ता है।
  • प्रेगनेंसी के दौरान यूं तो हर जांच जरूरी होती है लेकिन गर्भावस्था में नियमित सोनोग्राफी कराना भी हेल्दी प्रेगनेंसी का एक बहुत ही जरूरी हिस्सा है। सोनोग्राफी इसलिए भी जरूरी होता है क्योंकि इससे डॉक्टर को ये समझने में मदद मिलती है कि मां की कोख में पल रहा बच्चे की ग्रोथ सही चल रही है या नहीं।

 

सोनोग्राफी कितने प्रकार की होती है?

  • प्रेगनेंसी के दौरान एक महिला को कई प्रकार के सोनोग्राफी कराने की सलाह दी जाती है,
  • जिसमें एनोमली स्कैन, डबल मार्कर, डॉप्लर जैसे सोनोग्राफी प्रमुख होते हैं।

 

सोनोग्राफी से क्या नुक्सान होते है?

  • प्रेगनेंसी के दौरान सोनोग्राफी से किसी प्रकार के नुकसान की सम्भावना बेहद ही कम होती है।
  • इसके अलावा इससे शिशु के स्वास्थ्य पर भी कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है। डॉक्टर्स, हमेशा महिला की स्थिति की गंभीरता को देखते हुए ही सोनोग्राफी की सलाह देते हैं।
  • महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान कुछ टेस्ट कराने होते हैं, जो प्रत्येक तिमाही में जरूरी होते हैं।

 

सोनोग्राफी कितनी बार कराना चाहिए?

  • प्रेगनेंसी का पहला सोनोग्राफी वायबेलिटी स्कैन के रूप में जाना जाता है, जिसे गर्भधारण के 6 से 9 सप्ताह में करवाने
  • की सलाह दी जाती है।
  • दूसरा सोनोग्राफी, जिसका नाम न्युकल ट्रांसलुसेंसी यानी NT होता है। इसे एक जरूरी जांच के रूप में माना जाता है और ये गर्भधारण के ग्याहरवें हफ्ते से लेकर तेरहवें हफ्ते के बीच में होता है।
  • इसके बाद डबल मार्कर, जिसमें शिशु की ग्रोथ का सटीक अनुमान लगाया जाता है।
  • गर्भावस्था के 5वें और 6वें महीने में डॉप्लर टेस्ट कराने की सलाह दी जाती है।
  • कुल-मिलाकर कहा जाए तो प्रेगनेंसी पीरियड के दौरान 4 से 5 सोनोग्राफी करवाने में कोई हर्ज नहीं है।

सोनोग्राफी के क्या फायदे होते है?

  • सोनोग्राफी से प्रेगनेंसी की सटीक जानकारी मिलती है।
  • सोनोग्राफी से इस बात की जानकारी मिलती है कि कहीं भ्रूण, गर्भाशय से बाहर तो नहीं, जिसे एक्टोपिक प्रेग्नेंसी कहते हैं।
  • शिशु की दिल की धड़कन का पता चलता है।
  • शिशु के हाथ पैर और तंत्रिका तंत्र का विकास सही है या नहीं, इसकी जानकारी मिलती है।
  • शिशु का वजन पता चलता है और यह एक्पेक्टेड डेट ऑफ़ डिलीवरी(EOD) भी बताता है।

सोनोग्राफी  के लिए कौन से डॉक्टर को दिखाए?

  • Gynecologists

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