Postpartum Depression
पोस्टपार्टम डिप्रेशन क्या है?
- बच्चे को जन्म देने यानी डिलीवरी के बाद होने वाले अवसाद को पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहते हैं। यह अवसाद महिला को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रुप से प्रभावित करता है जिसके कारण चिंता, चिड़चिड़ापन, निराशा, दुख, एनर्जी घटना, भूख कम या अधिक लगना जैसे लक्षण नजर आते हैं और नींद पर भी असर पड़ता है।
- पोस्टपार्टम डिप्रेशन आमतौर पर डिलीवरी के 4 से 6 हफ्तों बाद नजर आता है लेकिन कभी-कभी कुछ महिलाएं बच्चे के जन्म के कई महीने बाद इसका अनुभव करती हैं। इसके साथ महिला को यह बार-बार महसूस होता है कि वह अपने शिशु की अच्छे तरीके से देखभाल नहीं कर पा रही है, जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन का ही लक्षण है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन शरीर के कई सिस्टम को प्रभावित करता है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन से पीड़ित महिला को प्रायः थकान महसूस होती है और उसकी नियमित दिनचर्या प्रभावित होती है। हर महिला में पोस्टपार्टम डिप्रेशन के अलग-अलग लक्षण सामने आते हैं
- सिरदर्द
- आंखों से धुंधला दिखाई देना
- नींद न आना
- लगातार थकान
- पैनिक अटैक
- भूख न लगना
- चिड़चिड़ापन
- रोने का मन होना
- पेट में दर्द
कभी-कभी कुछ लोगों में इसमें से कोई भी लक्षण सामने नहीं आते हैं और अचानक से मां अपने नए शिशु को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करती है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन के कुछ लक्षण ब्लू बेबी के लक्षणों जैसे होते हैं जो डिलीवरी के कुछ दिनों बाद नजर आते हैं जिसमें तेजी से मूड स्विंग होता है।
इसके अलावा कुछ अन्य लक्षण भी सामने आते हैं :
- सेक्स की इच्छा घटना
- फोकस में कमी
- आत्मविश्वास घटना
- नए शिशु में रुचि न होना
- अकेले रहने का मन होना
इसके अलावा पोस्टपार्टम डिप्रेशन से पीड़ित कुछ महिलाओं को नकारात्मक विचार आते हैं और कई बार आत्महत्या का भी ख्याल आता है। सिर्फ इतना ही नहीं महिला खुद को और खुद को नुकसान पहुंचाने की भी कोशिश करती है और लगातार अवसाद से ग्रसित रहती है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन होने के कारण क्या हैं?
- पोस्टपार्टम डिप्रेशन का सटीक कारण स्पष्ट नहीं है लेकिन शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्क बदलावों सहित कई कारकों से डिलीवरी के बाद अवसाद होता है।
- बच्चे के जन्म के बाद महिला के शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्तर कम हो जाता है जिसके कारण पोस्टपार्टम डिप्रेशन होता है।
- इसके अलावा थायरॉइड ग्रंथि में भी कम मात्रा में हार्मोन बनता है जिसके कारण थकान, सुस्ती और अवसाद महसूस होता है।
- साथ ही पर्याप्त नींद और संतुलित आहार न लेने के कारण भी डिलिवरी के बाद डिप्रेशन होता है।
- इसके अलावा शिशु के जन्म के बाद किसी की मदद न मिलना, अकेले शिशु की देखभाल और घर के काम करना, शिशु का बीमार पड़ना, आर्थिक समस्याएं और रिश्तों में परेशानी से भी पोस्टपार्टम डिप्रेशन होता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन का निदान कैसे किया जाता है?
पोस्टपार्टम डिप्रेशन का पता लगाने के लिए डॉक्टर शरीर की जांच करते हैं और मरीज का पारिवारिक इतिहास भी देखते हैं। इस बीमारी को जानने के लिए कुछ टेस्ट कराए जाते हैं :
- ब्लड टेस्ट- महिला के शरीर में हार्मोनल समस्याओं का पता लगाने के लिए खून की जांच की जाती है। इसके अलावा एनीमिया का भी पता लगाया जाता है।
- थायरॉइड टेस्ट- थॉयराइड ग्रंथि में हार्मोन के उत्पादन के जांच के लिए यह टेस्ट किया जाता है।
इसके अलावा मरीज से पोस्टपार्टम डिप्रेशन से जुड़े लक्षणों के बारे में पूछा जाता है और उससे जुड़े मनोवैज्ञानिक तथ्यों को समझा जाता है। महिला से नए बच्चे के जन्म की खुशी, भूख, चिंता,थकान, शिशु की देखभाल, आत्महत्या का विचार सहित मानसिक अवसादों से जुड़े ढेरों सवाल पूछे जाते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं महिला के पार्टनर या परिवार के सदस्य से भी कुछ जानकारी प्राप्त करके पोस्टपार्टम डिप्रेशन का निदान किया जाता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन का इलाज कैसे होता है?
डिलीवरी के बाद होने वाले अवसाद को इलाज से ठीक किया जा सकता है। हालांकि पोस्टपार्टम डिप्रेशन का इलाज इसकी गंभीरता पर निर्भर करता है। कुछ थेरिपी और दवाओं से व्यक्ति में पोस्टपार्टम डिप्रेशन के असर को कम किया जाता है। पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लिए कई तरह की मेडिकेशन की जाती है :
- सेलेक्टिव सेरोटोनिन रिअपटेक इनहिबिटर्स जैसे पैरोक्सीटिन, फ्लुओक्सेटिन और सेरट्रालिन आदि दवाएं दी जाती हैं जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षणों को कम करने में प्रभावी हैं।
- नई एंटीडिप्रेसेंट दवाएं मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर को टारगेट करती हैं और अवसाद के लक्षणों को कम करती हैं। इसके लिए डुलोक्सेटिन, वेनलाफैक्सिन आदि एंटी डिप्रेसेंट दवाएं दी जाती हैं।
- ट्राइसाइक्लिक एंटी डिप्रेसेंट और मोनोएमिन ऑक्सीडेज इनहिबिटर पुरानी एंटी डिप्रेसेंट हैं जो मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमीटर को प्रभावित करती हैं और अवसाद के लक्षणों को खत्म करती हैं।
- शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर को बैलेंस करने के लिए हार्मोन थेरेपी दी जाती है जिससे पोस्टपार्टम डिप्रेशन का असर कम होता है।
जीवनशैली में होने वाले बदलाव क्या हैं, जो पोस्टपार्टम डिप्रेशन को ठीक करने में मदद कर सकते हैं?
अगर आपको पोस्टपार्टम डिप्रेशन है तो आपके डॉक्टर वह आहार बताएंगे जिसमें बहुत ही अधिक मात्रा में विटामिन, मिनरल, फाइबर, प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व पाये जाते हों। इसके साथ ही आपको पर्याप्त पानी और ताजे फलों का जूस लेने की सलाह दी जाएगी। संतुलित आहार लेने और बाजार के चटपटे, तैलीय और मसालेदार भोजन से परहेज करके काफी हद तक पोस्टपार्टम डिप्रेशन से बचा जा सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं रोजाना एक ही समय पर थोड़ा थाड़ा दिन में कई बार भोजन करें और पेट में गैस या कब्ज न होने दें। डिलीवरी के बाद अवसाद होने पर आपको निम्न फूड्स का सेवन करना चाहिए:
- लिवर
- शेलफिश
- मशरूम
- दही
- दूध
- पनीर
- सलाद
- हरी पत्तेदार सब्जियां
- फल
- अखरोट
- बादाम
बच्चे के जन्म के बाद अपनी दिनचर्या सामान्य रखें और पर्याप्त आराम और नींद लें। शिशु की देखभाल में अपने पार्टनर या परिवार के अन्य सदस्यों की मदद लें। इस दौरान धूम्रपान, एल्कोहल, कैफीन या मादक पदार्थों से पूरी तरह परहेज रखें और रोजाना एक्सरसाइज करें ताकि आपकी बॉडी एक्टिव रहे। इसके अलावा अपने शरीर और अपने बच्चे से प्यार करें।
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PUBLISHED BY HEALTHS RAINBOW